एक दिन नही, हमे हर दिन 'इन्सान' समझो..

तुम और मैं..
आंचलमें छुपाकर 
जिंदगीके धूपसे बचाती वो मां हो...!
पायल पहनकर नन्हें पावोमें
संगीत बनकर बेटी बनती हो.....!


छोटी गलतियाँ अपनेपर लेके
पापाके डांटसे बचाती वो
तुम प्यारी बहना हो....!
सबसे छुपकर मैं रोती हूं ना
आंसू पोछनेवाली सखी हो....!

हर जगह तुम हो...
मेरे अंदर, मेरी सांसोमें....
बस्स कभी देवी मत बन जाना,
'इन्सान' हो 'इन्सान' बनकर जी लेना...
बस मेरे अंदरही रहना...!!!

एक दिन नही,
हमे हर दिन 'इन्सान' समझो....

- स्वप्नजा घाटगे (कोल्हापूर)
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